Adrak ki kheti in hindi | adrak ki kheti kaise kare | adrak ki kheti ki jankari | adrak ki kheti kaise hoti hai
किसानो की आय बढ़ाने में अदरक की खेती महत्वपूर्ण होती है इसकी खेती एकल या अन्त्र्वार्तीय दोनों ही रूप में की जाती है अदरक उच्च गुणवत्ता युक्त पोषक तत्वों से भरपूर होता है और साथ ही साथ इसमें औषधीय गुण भी प्रचुर मात्रा में होती है अदरक की खेती सबसे अधिक भारत में होती है तथा कुल उत्पादन का २ तिहाई भाग भारत में ही उपयोग में लाया जाता है अभी का वातावरण अदरक की खेती के लिए अच्छी है |
परिचय – अदरक की खेती
अदरक का एक भारतीय के दिल में विशेष स्थान है। हमारे खाना पकाने का एक अभिन्न अंग, इसकी अनूठी मीठी, मसालेदार और थोड़ी सी लकड़ी के स्वाद एक डिश को उठाते हैं और इसे पूरी तरह से आनंद के विभिन्न स्तर पर ले जाते हैं। अदरक, जिसे अद्रक के रूप में भी जाना जाता है, हमारे लिए एक गहरी भावनात्मक जुड़ाव है और एक कप अदरक की चाय के बारे में सोचा जाता है, जिसे पकोड़ों की एक प्लेट के साथ ‘एड्रक वली चाई’ के रूप में जाना जाता है, जो हम सभी के लिए गर्म और सुखद यादें लाता है।
इस सुनहरे मसाले के बिना, हमारे पसंदीदा स्नैक्स ब्लैंड और उबाऊ होते। इसके अलावा, हमारे पकवान के स्वाद को बढ़ाने के अलावा, अदरक के अद्भुत स्वास्थ्य लाभ भी हैं। चाहे इसका उपयोग भोजन में किया जाता है या एक कप चाय में पीया जाता है, अदरक के स्वास्थ्य लाभ निर्विवाद हैं |
अदरक में पोषक तत्व

एनर्जी | 333KJ/80Kcal |
कार्बोहाइड्रेट | 17.17 g |
सुगर | 1.7 g |
डाईएट्री फाइबर | 2 g |
फैट | 0.75 g |
प्रोटीन | 1.32 g |
थाईमिन B1 | 0.025 mg |
राइबोफ्लेविन B2 | 0.034 mg |
3.अदरक का प्रयोग
- पाचन को बढ़ाता है
- नौसिया की अच्छी दवा
- इसमें जिन्ज्रोल है जो अलग स्वाद देता है
- ये गर्भवती महिला की कमजोरी और नौसिया को कण्ट्रोल करने में सहायक है
- अदरक की जूस कोलेस्ट्रोल घटाता है और कोशिका की एब्नार्मल ग्रोथ को रोकता है
- आपके लिए एक प्राकृतिक ‘दर्द निवारक’ में निवेश करने का समय है। ‘ एक कप अदरक की चाय में काफी एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो मासिक धर्म के ऐंठन के दर्द को कम कर सकते हैं
- पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस एक आम पुरानी बीमारी है जो वर्षों से जोड़ों के खराब होने और खराब होने का परिणाम है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है, वे लगातार दर्द और जकड़न की स्थिति में होते हैं और बहुत अधिक विरोधी भड़काऊ दवाओं पर निर्भर होते हैं जिनके अपने दुष्प्रभाव होते हैं।
- अदरक को हमारे दैनिक आहार में शामिल करने से न केवल दर्द और तकलीफ को कम करने में मदद मिल सकती है, बल्कि अगर समय रहते बीमारी की प्रगति को धीमा करने में मदद मिल सकती है। अपने विरोधी भड़काऊ यौगिक अदरक के साथ, अदरक अधिक सफेद रक्त कोशिकाओं को सक्रिय करने में मदद करता है जो शरीर को बैक्टीरिया और वायरस से बचाते हैं। नतीजतन, सूजन में कमी होती है जो असहनीय दर्द से राहत देती है।
विश्व में अदरक की खेती 2020
देश | उत्पादन/टन | उत्पादन/शेयर |
भारत | 11.1m | 33% |
नाइजेरिया | 522K | 16% |
चाइना | 461K | 14% |
इंडोनेशिया | 340K | 10% |
नेपाल | 271K | 8.3% |
भारत में अदरक की खेती
- केरल
- असम
- आँध्रप्रदेश
- हिमांचल प्रदेश
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
अदरक की अन्तः वर्ती खेती
हम जानते है की अदरक की अधिक उपज के लिए इसको छाया की जरुरत पड़ती है अदरक अच्छी तरह से तब पकता है जब उसको 25-50% छाया प्राप्त होती है और इनको छाया देने के लिए हमें अन्तःवर्ती खेती करते है इसके लिए हमें निम्न के साथ अन्तःवर्ती खेती करनी चाहिए |
- सब्जी में – गोभी, टमाटर, मिर्च, लम्बी भिन्डी, फ्रेंच सेम
- अनाज में – रागी, मक्का
- दाल में – मटर, काला चना, चने की दाल
- तिलहन में – डलिया, सोयाबीन, सूरजमुखी
- अन्य में – तम्बाखू, अनानास
- नारियल
- काफी
- पपीता
अन्य वृक्षों के साथ की जाती है अदरक की खेती सभी प्रकार की जीवांश युक्त एवं उचित जल निकास की उचित व्यवस्था हो इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है भारी भूमि में गांठो का विकास तथा फैलाव ठीक प्रकार से नही हो पाता जिसमे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |

जलवायु अदरक की खेती में
अदरक की खेती गर्म तथा आद्रता वाले स्थानो में की जाती है मध्यम वर्षा या सिंचाई बोवाई के समय अअदरक की गांठ के अंकुरण के लिए आवश्यक होती है थोड़ी ज्यादा वर्षा पौधो की वृद्धि के लिए तथा इसकी खुदाई के एक माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता होती है समय पर बोवाई या अदरक रोपण अति आव्श्यक है 1500-1800 mm कि वर्षा वाले सथनो मे अदरक कि खेति कि जा सकति है परनतु उचित जल निकास रहित सथनो पर खेति करने पर भरि नुकसान होता है औसतन तापमान २५ डिग्री सेल्सियस गर्मी में ३५ डिग्री सेल्सिअस वाले स्थानों पर इसकी खेती बागो में अंतर्वार्तीय वर्गों में की जाती है 1500 मीन समुद्र सतह से ऊपर में आप इसकी खेती कर सकते है |
भूमि का चयन अदरक की खेती के लिए
किसान भाइयो भूमि का चयन करने से पहले भूमि का परिक्षण अवश्य करा ले मिट्टी जाँच का मुख्य उद्देश्य इसकी उपजाऊ क्षमता जानना, उर्वरता परखना, मिटटी में सुलभ पोषक तत्वों की सही मात्रा में ज्ञात करना व उर्वरको का सही मात्रा का निर्धराब करना होता है समस्या प्रद मिट्टियों के लिए मृदा सुधारक तत्वों का सही मात्रा जैसे अम्लीय मिट्टियो के लिए चुने तथा उसर मिट्टियो ले लिए जिप्सम, उचित भूमि एवं जल सम्बन्धी जानकारी का पता, मिटटी परिक्षण से ही पता चलता है |
नजदीक के किसी भी कृषि संसथान में जाकर भूमि का परिक्षण कराए जो मुफ्त होता है वहा जाकर वैज्ञानिक को बोले की मई अदरक की खेती करना चाहता हु भूमि के परिक्षण के बाद वैज्ञानिक आपको बतायेंगे क्या डालना है क्या नही डालना है या बिलकुल उपयुक्त है उसके बाद ही आप अदरक की खेती करे जिससे अधिक पैदावार होगी यदि आप दुरी वाले इलाके में रहते है जहा सरकार की ऐसी व्यवस्था नही है तो आपको किस तरह की भूमि का चयन करना है |
- हल्की मिटटी में अदरक अच्छा बढ़ता है
- रेतीली लोंर्म मिटटी
- लाल पार्श्व मिटटी
- दोमट मिटटी
एक खेत में १०-12 स्थानों से अलग २ नमूने एकत्र करके एक साथ मिलाये इस विधि द्वारा तैयार की गयी लगभग आधा किलो ग्राम मिटटी को छाया में भली भांति सुखाकर कपडे की थैली में भरे | मोटे कागज के दो टुकडो पर अपना नाम व पता लिखकर एक टुकड़े को थैली में डाले, दुसरे को थैली के साथ अच्छी प्रकार बांधे | फसल आने से कम से कम दो महीने पहले मिटटी के नमूने को प्रयोगशाला भेजे |
खेत की तैयारी अदरक की खेती के लिये
खेत की तैयारी मार्च से अप्रैल में खेत की गहरी जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करने के बाद अंकुरण को लगाने के लिए छोड़ दे मई के महीने में डिस्क हैरो या फिर रोतावेटर से जुताई करके मिटटी को भुरभुरा बना लेना चाहिए अनुशाषित मात्रा में गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट या फिर नीम की खली का सामान रूप से खेत में डालकर पुनः कल्टीवेटर या देशी हल से २-३ बार आड़ी तिरछी जुताई करके पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए |
सिंचाई की सुविधा होने के अनुसार तैयार खेत की छोटी छोटी क्यारियो में बाँट लेना चाहिए अदरक की सफल खेतीके लिए भूमि सुधार करना अनिवार्य है अंतिम जुताई के समय उर्वरको की अनुशाषित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए शेष उर्वरको फसल के देने के लिए बचाकर रखना चाहिए जहाँ जल निकास न हो वहां 1-2 मीटर चौड़ी 2-3 इंच ऊँची और 3-4 मीटर लम्बी बोवाई करनी चाहिए |
किस्मे
कच्चे अदरक की किस्मे |
रिओ डी जेनेरियो चाइना वायनाड लोकल टफनागिया तेलिरोल |
सोंठ की किस्मे |
मारन वायनाड मेनन थोडे वुल्लुनाटू अरनाडू |
अदरक की खेती के लिए सुधार की गयी प्रजातियाँ
अदरक की प्रजाति | इससे रिलीज़ किया | औसत उपज/(ताज़ा t/hac.) | पकना (दिन) | सुखी (%) | कच्चे रेशे(%) |
सुप्रभा | HARS(ओड़िसा) | 16.6 | 329 | 20.5% | 4.4 |
सुरुचि | HARS(ओड़िसा) | 11.6 | 218 | 23.5 | 3.8 |
सुरभि | HARS(ओड़िसा) | 17.5 | 225 | 23 | 4.0 |
IISR varada | IISR | 22.6 | 200 | 19.5 | 3.3-4.5 |
भारत के राज्यों में अदरक की प्रजातियाँ
राज्य | प्रजाति |
असम | नादिया, छेहरेल्ला |
हिमांचल प्रदेश | हिमांचल, रिओ-डे-जेनेरियो |
कर्नाटक | हिमांचल, जोरहट, वायनाड लोकल |
केरला | रिओ-डे-जेनेरियो, बर्दवान, जमैका, नादिया, मरनबाजपयी, नारास्पटम्म, कुरुपम्पडी, थिन्ग्पुल, अस्सा, मनान्थावाडी, |
महाराष्ट्र | महिम, पूमा, वायनाड |
मेघालय | तुरा, थिन्गपुयी, नादिया |
मिज़ोरम | थिन्गपुई, थिन्ग्लादुम, थिन्ग्रिया |
नागालैंड | थिन्ग्लादुम, नाडिया, खासी लोकल |
सिक्किम | भैन्सेय, गुरुबथान |
तमिलनाडु | मारण, थोदुपुज़ा, हिमांचल, रिओ-डे-जेनेरियो |
त्रिपुरा | नादिया |
अदरक की खेती करने वालों की पहचान
अधिक उपज – वरदा, रियो-डे-जेनेरियो,हिमांचल, सुप्रभा,मरण,महिमा,राजठा |
अधिक प्रकंद – वरदा, महिमा, राजठा |
उच्च सुखी – वरदा, महिमा,मरण |
उच्च तेल – वायनाड, कुन्नामंगलम, अम्ब्लावायल |
भण्डारण पेस्ट के लिए प्रतिरोध – varada |
उच्च अदरक और शोगोल – वायनाड, कुन्नामंगलम, अम्ब्लावायल |
अदरक को बहुत ही अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है अदरक को चुना और फास्फोरस की आवश्यकता होती है बोवाई के पूर्व खेत तैयार करते समय 40 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सदी कम्पोस्ट खाद 20 टन वर्मी कम्पोस्ट मिटटी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए ताकि मृदा में जीवांश कार्बन में वृद्धि के साथ साथ पोषक तत्व संरक्षित रह सके एवं मृदा में पर्याप्त वायु संचार तथा मिटटी भुरभुरी बनी रहे |

पोषक तत्व प्रबंधन
- नाइट्रोजन – 100-120 किलोग्राम
- फास्फोरस – 50 किलोग्राम
- पोटाश – 50 किलोग्राम
- फास्फोरस घोलक जैव उर्वरक की 5 किलोग्राम मात्रा 50 किलोग्राम पकी हुइ गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए
- जिससे फास्फोरस की विलेयता में वृद्धि होती है
- फसल द्वारा वांछित मात्रा में अवशोषित किया जा सके
फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोवाई के दो माह बाद डालनी चाहिए नील लेपित यूरिया का प्रयोग विशेषकर होता है
अन्तः वर्तीय खेती के रूप में यह फसल इसलिए भी महत्वपूर्ण होती है क्योकि इसे आंशिक छाया की आवश्यकता होती है
अदरक की बोवाई का सही समय
- केरल – मई
- एमपी के टीकमगढ़ – मध्य जून
- उत्तर प्रदेश एवं पहाड़ी क्षेत्र – जुलाई के प्रथम एवं द्वितीय सप्ताह
बोवाई का समय इस प्रकार चुनना चाहिए ताकि वर्षा शुरू होने से पहले अदरक के पौधे दो सप्ताह के हो जाएँ अदरक बोने के लिए अदरक की पिछली फसल को कम उपयोग में लाया जाता है बड़े बड़े अदरक के पंजो को इस तरह तोड़ लेते है की जिसमे कम कम 2 या 2 अंकुर रहे |
बीज की मात्रा
12 से 15 क्विंटल कंद की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर में होती है इन फसलो की बीज की मात्रा कम लगती है कंद का वजन 15 से 20 ग्राम होना चाहिए बोवाई के समय यह ध्यान रखना है की बीज उपचार जरुर करें |
बीज उपचार
- बीज उपचार करने के लिए बाविस्टिन ३ ग्राम प्रति लीटर अथवा डायथेन एम-४५ ५ ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कंद को कम से कम ३० मिनट तक डुबाकर उपचारित करना चाहिए
- अगर आप बीज का बिना उपचार किये बोवाई करेंगे तो उसमे बहुत से किट लग जायेंगे इल्ली भी लग जायेंगे बीज के उपचार के समय आप बीजो को गरम पानी से धोले जिससे वह पूरी तरह से रोगमुक्त हो जायेगा |
- कार्बेडाजिम २ ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर कंद को उपचारित करे
अदरक की बोवाई
कतार को 30-40 सेमी और 20-25 सेमी पौधे से पौधों की दुरी रखनी चाहिए बीजो को लगभग 4-5 सेमी गहराई में बोने के पश्चात् हलकी मिटटी या गोबर की खाद पर्त् से ढक देना चाहिए बोवाई के तुरंत बाद क्यारियो को धान या भूषा से ढक देना चाहिए |
बिछौना
अदरक की खेती बिछौना का खास महत्व है अदरक की बोवाई गर्मी के मौसम में की जाती है ऐसे में बिछौना जमीन की नमी को बनाये रखता है तथा अदरक को उगाने में भी सहायक होता है | इसके अलावा बिछौना भूमि में सुधार लाने, तापमान बनाये रखने, भूमि कटाव को रोकने तथा खरपतवारों को रोकने में सहायता करता है |
बिछौने के रूप में विभिन्न प्रकार के पौधों को अवशेष,हरी तथा सुखी पत्तियों तथा गोबर की खाद इत्यादि का प्रयोग होता है | बिछौना अच्छी तरह से सड़ जाने पर भूमि की उपजाऊ छमता को बढ़ता है | एक हैक्टेयर जमीन के लिए 50 किवंटल सूखे पत्ते या 125 किवंटल हरे पत्तों की 3-5 सेमी मोटी तह बना बना दें |यदि पहले लगाया गया बिछौना सड़ जाये तो 40 दिन बाद दुसरे बिछौने की तह लगायें | गेहूं की तुड़ी बिलकुल ना डाले, क्योंकि इसको डालने से दीमक लग सकता है |
निराई – गुड़ाई
आवश्यकतानुसार खेत को खरपतवार रहित तथा मिट्टी भुरभुरी रखने अदरक रखने हेतु अदरक की फशल में 2– 3 बार निराई – गुड़ाई रखनी चाहिए | प्रत्येक निराई – गुड़ाई के बाद मिट्टी को भुरभुरी करके पौधों को चारो तरफ मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए | इस प्रकार दो बार मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है | निराई – गुड़ाई करते संमय यह बरतना चाहिए कि भूमि के नीचें गाठों को हानि ना पहुचे |
अदरक की सिंचाई
- अदरक मुख्य रूप से वर्षा आधारिक फसल के रूप में उगाया जाता है
- शुष्क सिंचाई के दौरान कम वर्षा वाले क्षेत्र में सिंचाई भी दी जाती है
- अदरक की फसल के लिए 1320-1520 मिमी पानी की आवश्यकता होती है
- अदरक की फसल के लिए 1320-1520 मिमी पानी की आवश्यकता होती है
- अंकुरण रोपण के 15-20 दिन बाद
- रोपण के 20-15 दिनों के बाद प्रकंद का गठन
कर्नाटक, गुजरात, जलगाँव में अदरक की खेती ड्रिप इरीगेशन से होती है यदि बहुत ही हल्के वाली जमीं है ग्रेवल वाली जमीं है तो जरुर आपको स्प्रिंकलर लगाना चाहिए लेकिन यदि अच्छे गुणवत्ता की जमीन है लैटरेटीक मिट्टी , रेतीली मिट्टीम, वादू मिश्रित काली जमीन, चुनखडी मिश्रित काली जमीन वहां में आपको ड्रिप लगाना चाहिए |
पोषण की कमी होने पर निम्न प्रकार की लक्षण हमे देखने को मिलती है
नाइट्रोजन की कमी से दिखने वाले लक्षण – पुरानी पत्तियां पीली पड़ जाती है जिससे अदरक की वृद्धि रुक जाती है इसकी कमी को पूरा करने के लिए 1% यूरिया का पत्तो पर स्प्रे कर
पोटेशियम की कमी से दिखने वाले लक्षण – पत्तियों के किनारे सूखे और सफ़ेद होने लगते ह
मग्नेसियम की कमी से दिखने वाले लक्ष्ण – पत्ते लाल हो जाते है उसके बाद तना पिला पड़ने लगता है फिर पूरी तरह से पूरी पट्टी पिली पड़ जाती है जिससे इसकी वृद्धि रुक जाती है इसकी कमी को पूरा करने के लिए 5gm/लीटर पानी से स्प्रे करे |
आयरन की कमी से दिखने वाले लक्षण – इसकी कमी से पत्ते सफ़ेद हो जाते है इसकी कमी को पूरा करने के लिए 10KG फेरस सलफेट/ प्रति एकड़ दर से करे

अदरक में बीमारी और उसका उपचार
अदरक गट्ठी सडन रोग – प्रभावित पौधों के पत्ते पीले पड़ जाते है तथा इन पौधों के ठंडल जमीन की सतह से नर्म पड़ने के पश्चात् जमीन पर गीर जातें है | इस प्रकार रोगी पौधों की गाठें नर्म तथा पिली – पिली पड़ जातें हैं | अन्दर की रेशेदार उत्तिकाओं को छोड़कर अन्य सभी उत्तिकाएं सड़कर गल जाती है | रोगी पौधे सुखकर जमीन पर गिर जाते हैं | यह सड़क पिथियम तथा फ्यूजेरियम वंश की अनेक फफूंद जातियों द्वारा उत्तपन्न होता है | कभी – कभी सूत्रकृमी जैसे मिलायाडोगानी व कीट जैसे मिमिगारैल व युमेरस भी गाठों में छेद करते है जिससे फफूंद के प्रवेश को सुगमता मिल जाती है |
पित रोग – प्रभावित पौधों के निचले पत्तो के किनारे पीले से लाल जाते हैं तथा इन पौधों के ठंडल सुख जाते हैं | यह रोग खेतों में अलग – अलग स्थानों पर विशेष रूप में दिखाई देता है | रोगी गांठे बाहर से स्वस्थ दिखाई देता है परन्तु अन्दर के भाग भूरे रंग के पड़ जाता है| बरसात में यह रोग अधिक फैलता है | इस रोग का प्रोयोग उन स्थानों पर अधिक होता है जहाँ पानी का निकास ना हो | यह रोग फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम तथा फ्यूजेरियम सोलेनाई द्वारा उत्पन्न होता है |
अदरक का मालानी रोग – इस रोग लक्षण सबसे पहले पौधों के निचले पत्तो में देखते हैं जो किनारों से पीले से तांबे रंग के हो जाते हैं तथा इनसे लगने वाले डंठलो में लम्बी भूरी से कली रंग की धारियां दिखती हैं | इसके पश्चात पौधों के पत्ते ऊपर को मुड़ जाते हैं तथा पूरा पौधा सुख जाता है | प्रभावित पौधों के डंठल तथा गांठे चिपचिपी हो जाती है | तथा गांठो गो दबाने पर सफ़ेद व बदबूदार पानी निकलता है इस प्रकार प्रभावित गाठों के टुकड़ों को यदि साफ पानी में डाला जाए तो यह दुधिया रंग का हो जाता है | इस मलानि रोग को रालस्टोनिया सैलेनेसिरयम नामक जीवाणु उत्पन्न करता है |
पत्तों का धब्बा रोग – पौधों के पत्तों पर विभिन्न आकर के लम्बे – लम्बे धब्बे उभरते हैं जिनके मध्य के सतह पर काले – काले बिंदु दिखाई देते हैं | यह रोग फाईलोस्टीकटा जिन्जीबैरी से उत्पन्न होता है |
मुलायम सड़ांध (सॉफ्ट रॉट) – इसकी बीमारी लगभग सभी अदरक की खेती करने वालो किसानो को परेशान करती है यह बीमारी बहुत ही खतरनाक होती है और काफी नुकसानदायक होती है यह बीमारी लगभग ५०-९०% उत्पादन को कम कर देती है पायथियम की प्रजाति मुलायम सड़ांध की जिम्मेदार होती है सबसे पहले यह जड़ के ऊपर आक्रमण करता है जड़ से फंगस प्रकंद में जाता है जिससे यहाँ प्रकंद को सड़ा देता है जिसे रिडोमिल १.५०gm/प्रति लीटर पानी की दर से दूर किया जा सकता है जैविक तरीके से ट्राईराकोडर्मा विरिड 10ml + पेसिलोम्यसेस लियासाइनस 10ml प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करना चाहिए |
बैक्टीरियल विल्ट – अदरक का बैक्टीरियल विल्ट सबसे गंभीर प्रकंद जनित रोग है और मृदा तथा बीज की बीमारी है जीवाणु संक्रमण के 5 से 10 दिनों के बीच अदरक में तेजी से विल्ट का कारण बनता है रोग की गंभीरता रोगजनकों के तेजी से फैलने के कारण होती है जो अनुकूल वातावरण में उच्च वर्षा और गर्मी के मौसम में होती है। इसका उपचार 30 मिनट में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 20 ग्राम /100 लीटर पानी की अवधि के साथ बीज प्रकंद का उपचार करना चाहिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.2% मिट्टी को गीला करना चाहिए |
शूट बोरर – अदरक के पौधे पीले और संक्रमित छद्म तनों की पत्तियों को सुखाते हैं छद्म स्टेम पर एक बोर छेद की उपस्थिति हो जाती है जिसे कोराजेम 0.5ml/ltr की मात्रा में स्प्रे किया जाना चाहिए |
पत्ती का रोलर किट – पत्ते लम्बे मुड़े या लुढ़के हुए हो जाते हैं पत्तियां पीली हो जाती हैं और धीरे-धीरे सूख जाती हैं इसका उपचार कोराजेन 0.5ml या फेम 0.5ml/ltr पानी की दर से स्प्रे करके किया जा सकता है |
रूट गाँठ निमेटोड – यहाँ बीमारी दक्षिण भारत, उड़ीसा असम में निमेटोड की बीमारी बहुत ही होती है इसके उपचार के लिए हमें कम से कम आधा टन प्रति आधा एकड़ नीम डालेंगे तो निमेटोड कण्ट्रोल हो सकता है |
पलवार के फायदे
- भूमि में काफी समय तक नमी बनी रहनी रहती है
- अंकुरण शीघ्र होता है
- खरपतवार नियंत्रण होता है
- सिंचाई की आवश्यकता कम होती है
- वायु संचार होता है
- जैविक खाद की पूर्ति होती है
अदरक का अंकुरण बोने से लगभग 15 से 20 दिन के बाद होता है अदरक की बोवाई के लगभग 40-45 दिन के बाद अवस्था में हर माह फसल की निराई गुडाई करके मिटटी चढ़ानी चाहिए वर्षा के ना होने पर प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए लेकिन ध्यान रहे की खेत में सिंचाई के बाद किसी भी स्थान में पानी न भरा रहे इसके लिए आवाश्यक है की जमीन समतल तथा ऊँची जल निकासी वाली हो |
अदरक की फसल लगभग 8-9 महीने में तैयार हो जाती है पकने की अवस्था में पौधे की बढ़वार रुक जाती है पौधे भी पीले पड़कर सुखने लगते है और पानी देने के बाद भी इनकी वृद्धि नहीं होती ऐसी फसल खोदने लायक मानी जाती है |
कटाई
अदरक, जब सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है 6 वें महीने से कटाई शुरू कर देनी चाहिए आपको यदि सूखे में अदरक चाहिए तो ८ वें महीने में इसकी खुदाई करनी चाहिए ज्यादा समय होने से इसकी गुणवत्ता कम हो जाता है एक दिन के लिए अदरक को सुखाकर बाहर धुप में रख लेना चाहिए ताकि वो अच्छे से सुख जाये |
अदरक को सुखा वाला चाहिए , जब पौधे की पत्तियां पीली हो जाती हैं और मरना शुरू हो जाती हैं तब काटा जाता है इसके क्लैंप को निकला जाता है छोटे छोटे टुकडो में काट लिया जाता है इसको जुट के बोरे में भरकर मार्केट में भेज दिया जाता है |
छिलाई
छिलने का कार्य बाहरी त्वचा को हटाने के लिए किया जाता है तथा छीलने से सूखने की प्रक्रिया तेज हो जाती है और राइजोम की एपिडर्मल कोशिकाओं को बनाए रखता है, जिसमें अदरक की सुगंध के लिए आवश्यक तेल होता है स्वदेशी रूप से, अदरक के टुकड़ों को रात भर पानी में भिगो कर अदरक के छिलकों को रगड़ कर या तेज बांस के छींटों से रगड़कर छीलने का काम किया जाता है।
कटी हुई अदरक की सफाई
यह ढेला को तोड़ने और मिट्टी के ढेला और जड़ों को हटाने के साथ किया जाता है किया जाता है अदरक के गुच्छे सूखने के लिए आवश्यक आकार के प्रकंदों को तोड़ दिए जाते हैं |
उपज
अदरक की उपज लगभग 140-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है एक क्विंटल के लिए 3000 रूपये पर एकड़ खर्चा आता है यानी एक एकड़ के लिए 1.20 हजार होता है इसमें सभी आते है जैसे अदरक का बीज, सिंचाई की व्यवस्था ,उर्वरक आदि का सही उपयोग करने से अच्छा उपज प्राप्त होता है |
भण्डारण
अदरक भण्डारण के लिए खातियो की सफाई करें | इन खातियो में सुखा घास जलाये | खातियो के धरातल सतह पर रेत की मोटी परत 15-20 सेमी बिछाए | अदरक को इंडोफिल एम-45 240 ग्राम + बैविस्टीन 100 ग्राम + डेर्मैट 200 एम एल प्रति 100 लीटर पानी के घोल में एक घंटे के लिए उपचारित करें | इस घोल में 90 किलो अदरक का उपचार पहली बार तथा 70 किलो अदरक का उपचार दूसरी बार करे |
उपचारित गांठो को छाया में सुखाने के पश्चात् खातियो में डाले खातियो के मध्य में एक छिद्रित रबड़ की नाली रखे तथा इसका एक सिरा अदरक बीज के ऊपर होना चाहिए खटियों का एक चौथाई भाग ऊपर से खाली रखें अदरक के बीज के ऊपर सुखा मोटा घास डाले | खातियों के ऊपर लकड़ी के किनारे गोबर मिटटी के मिश्रण से लेप दे अदरक बीज की मार्च माह में जाँच करें |
यदि इसमें रोगी गांठे दिखे तो अदरक बीज को धुप में सुखाये अन्तः रोगी गांठे निकाल कर किसी गड्ढे में दबा दे | निचले पहाड़ी क्षेत्रो के लिए अदरक का भण्डारण रेत की मोटी तह के ऊपर करें| निचले पर्वतीय क्षेत्रो में अदरक को खेत से फ़रवरी माह में निकाले इसके बाद इसको एक मीटर गहरे गड्ढे में दबाए गड्ढे के निचे पहले सुखा घास, फिर अदरक तथा बाद में सुखा घास व मिटटी से दबाए इस प्रकार अदरक को ४५ दिनों तक रखें इसके पश्चात् अदरक को निकाले तथा इस पर लगी हुई जड़ो को तोड़े फिर इसे किसी ठन्डे कमरे में जून माह तक रखे |
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